Dr Bhimrao Ambedkar Death Anniversary: आज ही के दिन छोड़ गए थे इस दुनिया को बाबा साहेब अंबेडकर
Dr Bhimrao Ambedkar Death Anniversary
Dr Bhimrao Ambedkar Death Anniversary: डॉ भीमराव अंबेडकर (Dr Bhimrao Ambedkar) ने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण कार्यों को किया. वे कानून के बहुत बड़े विशेषज्ञ माने जाते थे. वे बुद्धिजीवी होने के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे। उन्हे राजनैतिक और अर्थशास्त्र का पूरा ज्ञान था. हमारे देश के संविधान निर्माता भी बाबा साहेब ही थे. ये दिल के इतने अच्छे थे कि लोगों की मदद करने में कभी भी पीछे नहीं हठते थे.
समाज को आगे ले जाने वाले इस मसीहा का निधन 6 दिसंबर, 1956 को आज ही के दिन हो गया था. जिसके बाद उनके निधन दिवस को हर साल महापरिनिर्वाण दिवस (Mahaparinirvan Day) के रूप में मनाया जाता है.
उनके बाद उनके कार्यों को उनके अनुयायियों ने आगे बढ़ाया और इस शोषित समाज में समाज के लोगों को आगे बढ़ाने के लिए हर तरह के प्रयास किए और सफल भी रहे है. बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का योगदान आज भी देश के लोगों के हित में अतुलनीय माना जाता है.
सामाजिक तिरस्कार का सामना करना पड़ता था बाबा साहेब को
हमारे बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म मध्यप्रदेश के महू में 14 अप्रैल 1891 हुआ था. वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की 14वीं संतान थे. अपने माता-पिता की वे आखिरी संतान थे. वे हिंदूओं में अछूत माने जाने वाली महार जाति से ताल्लुक रखते थे, इस कारण भीमराव को बचपन से ही घोर भेदभाव और सामाजिक तिरस्कार का सामना करना पड़ा था. इस सभी को सहन करने के बाद भी उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और हर परिस्थिति का डटकर सामना किया. यही नहीं, आगे चलकर उन्होने समाज में अपना स्थान बनाया, जिसके बाद उन्होने दलित और शोषित वर्ग से जुड़े समाज का उत्थान करने के लिए खुद को उन्हे समर्पित कर दिया.
खराब तबीयत की वजह से हुआ था निधन
डॉ भीमराव अंबेडकर का निधन 6 दिसंबर, 1956 में हुआ था. दरअसल उन्हें साल 1948 से डायबिटिज की शिकायत थी और इस हालत में उन्हे ढेर सारी दवाईया खानी पड़ती थी, ऐसे मे दवाओं के साइड इफेक्ट की वजह से उनके आंखें धीरे-धीरे कमजोर सी होने लग गई थीं. साल 1955 में उनकी तबियत काफी खराब हो गई थी. इसके बाद 6 दिसंबर को दिल्ली मे आज ही के दिन उन्होने अपने प्राण छोड़ दिये.
सबसे पहले उनकी पत्नी को पता चला था बाबा साहेब के निधन के बारे में
डॉ भीमराव अंबेडकर की पत्नी श्रीमती अंबेडकर जब सुबह मे उठी और उन्होंने पति के पैर को हमेशा की तरह कुशन पर पाया. लेकिन उन्हे इस बार कुछ ठीक नहीं लगा फिर कुछ ही मिनटों के बाद उन्हें महसूस हुआ कि बाबा साहेब अब इस दुनिया मे नहीं रहे. वे सबको अलविदा कहकर चले गए थे. उनके ड्राईवर रत्तू ने बाबा साहेब की छाती पर मालिश कर की, हाथ-पैर भी हिलाए डुलाए, उनके मुंह में एक चम्मच ब्रांडी डाली. लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. सब प्रयत्न करने बाद उन्हे यकीन हो गया था कि बाबा साहेब सच मे इस दुनिया मे नहीं रहे. उन्हे लगा कि वे शायद रात में सोते समय ही गुजर चुके थे. लेकिन उनकी मौत की खबर सुबह मे पता चली.
आग की तरह फैल गई थी बाबा साहेब के निधन की खबर
बाबा साहेब के निधन (Dr Bhimrao Ambedkar Death Anniversary) के बाद उनकी पत्नी श्रीमती अंबेडकर के विलाप करने की आवाज तेज हो चुकी थी. रत्तू भी मालिक के पार्थिव शरीर से लगकर रोए जा रहे थे- ओ बाबा साहेब, मैं आ गया हूं, मुझको काम तो दीजिए. रत्तू अपने मालिक के प्रति बहुत ही वफादार था और उनके दिल मे अपने मालिक के लिए जो प्रेम और चिंता थी, वह उनके रोने के समय साफ-साफ देखा जा सकता था.
इधर श्रीमती अंबेडकर भी चुप नही हो रही थी. फिर कुछ देर बाद रत्तू ने करीबियों और फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों को दुखद सूचना दे दी. यह खबर सुनकर लोग तुरंत नई दिल्ली में 20, अलीपोर रोड की ओर बाबा साहेब को देखने के लिए दौड़ पड़े. भीड़ में हरकोई इस महान व्यक्ति के आखिरी दर्शन करना चाहता था. यही प्यार और सम्मान तो उन्होने अपने जीवन मे कमाया था.
बौद्ध धर्म की परंपरा से हुआ था अंतिम संस्कार
बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर का अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म की परंपराओं के अनुसार मुंबई के दादर स्थित चौपाटी बीच पर किया गया था. उस समय वहां पर 5 लाख से भी ज्यादा लोगों ने उन्हें भावभरी विदाई दी थी.
सन 1950 में, अंबेडकर ने बौद्ध विद्वानों और भिक्षुओं के एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए श्रीलंका की यात्रा की. अपनी यात्रा की वापसी के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म पर एक किताब लिखने का फैसला किया और जल्द ही खुद को बौद्ध धर्म में परिवर्तित कर लिया. बाबा साहेब अंबेडकर ने सन 1955 में भारतीय बौद्ध महासभा की स्थापना की थी. उनके द्वारा लिखी गई उनकी पुस्तक “बुद्ध और उनका धम्म” उनके मरणोपरांत प्रकाशित हुई थी.
डॉ भीमराव अंबेडकर ने चौथे विश्व बौद्ध सम्मेलन में भाग लेने के लिए काठमांडू की यात्रा की. उन्होंने 2 दिसंबर, 1956 को अपनी अंतिम पांडुलिपि, “द बुद्धा या कार्ल मार्क्स” को पूरा किया. उस वक्त से ही डॉ. अंबेडकर ने खुद को भारत में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए समर्पित कर दिया था. उन्होंने “बुद्ध और उनका धम्म” शीर्षक से बौद्ध धर्म पर एक पुस्तक भी लिखी थी. उनकी एक और किताब है “रिवोल्यूशन एंड काउंटर रेवोल्यूशन इन इंडिया”.
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया के दूसरे अध्यक्ष थे और महाराष्ट्र विधानपरिषद के सदस्य के रूप मे भी नियुक्त थे. बाबासाहेब के बड़े पोते प्रकाश यशवंत अंबेडकर भी बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया के प्रमुख सलाहकार के रूप मे नियुक्त रह चुके है और वे भारतीय संसद के दोनों ही सदनों के सदस्य भी रह चुके हैं. वहीं उनके परिवार मे देखा जाए तो छोटे पोते आनंदराज अंबेडकर रिपब्लिकन आर्मी की अगुआई करते हैं.
इतना ही नहीं डॉ अंबेडकर की चौथी पीढ़ी भी सक्रिय रूप से उनको कार्यों का आगे बढ़ाने का काम कर रही है और समाज को सुधारने के साथ-साथ बाबा साहेब की नीतियों पर आगे बढ़ कर उनके सपनों को साकार भी कर रही है. यही कारण है कि बाबा साहेब का नाम आज भी इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में लिखा हुआ है.